कोराना वायरस से हुए लाॅकडाउन से पंजाब की और से श्रमिकाें का का पलायन जारी है। इस महामारी ने न केवल लोगों की जिंदगी छीनी, बल्कि बेहतर जीवन के लिए दूसरे शहर में आए गरीब और मजदूर वर्ग से उनकी उम्मीदें और सपने भी छीन लिए। शनिवार को इन्हीं टूटे सपनाें काे समेटकर करीब 300 श्रमिकाें काे 10 बसों में यूपी के सहारनपुर तक के लिए रवाना कर दिया गया। सुबह करीब 6 बजे से कतारों में लगे मजदूरों का इंतजार करीब दोपहर के 1 बजे खत्म हुआ। 52 सीटाें वाली एक बस में एक-एक करके करीब 30 मजदूरों को बैठाया गया। ऐसे ही करीब दस बसें यहां से रवाना की गई।
करीब आठ महीने अपने साले के कहने पर राजकुमार सिंह अपनी पत्नी प्रियंका सिंह और दो बच्चों के साथ अम्बाला के नन्हेड़ा में आए थे। दो महीने काम की तलाश में गुजारी और चार महीने छोटा-मोटा काम किया। आर्थिक हालत थोड़े सुधरे तो दो महीने पहले चाय की दुकान खोली। लेकिन लॉकडाउन ने सब चौपट कर दिया। 6 साल पहले पिता के देहांत के बाद बड़े भाई की जिम्मेदारी निभा रहे राजकुमार के छोटे भाई के लीवर में डॉक्टर ने गांठ बताई है। बीमार भाई को देखभाल के लिए मां घर में अकेली है। लॉकडाउन में ढील हुई तो मां की मदद और भाई की देखरेख के लिए यूपी के आजमपुर के लिए अपनी बारी की राह देखता राजकुमार।
पानी के साथ बिस्कुट खाते बहादुर ने कहा... भूख तो मिटानी ही है
अमृतसर में कपड़ा फैक्टरी में काम करने वाले बहादुर सिंह ने बताया कि 6 दिन पहले मैं और मेरा भाई महेश अमृतसर से चले थे। किसी तरह अम्बाला पहुंचे हैं, हम लखनऊ जा रहे हैं। मालिक ने पैसे नहीं दिए और कहा कि काम शुरू होने पर वाप स आ जाना। पानी के साथ बिस्कुट खाते बहादुर सिंह के चेहरे पर किसी के प्रति कोई नाराजगी नहीं थी। साथ ही बताया कि रास्ते में उन्हें खाने की कोई दिक्कत नहीं हुई। कोई खाने पैकेट देता तो बिस्कुट थमा जाता। जो मिला खा लिया। भूख तो मिटानी ही है।
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source https://www.bhaskar.com/local/haryana/ambala/news/from-6-oclock-in-the-morning-the-queues-started-migrating-the-bus-left-at-1-oclock-in-the-afternoon-127308218.html
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