भिवानी : हनुमान जोहड़ी मंदिर धाम में आज 19 दिसम्बर के दिन शहीद हुए देश के 3 महान क्रांतिवीरों को श्रद्धा सुमन अर्पित कर याद किया गया। तीनों वीर देश को आजादी दिलाने के लिए वीरगति को प्राप्त हुए। युवा जागृति एवं जन कल्याण मिशन ट्रस्ट के द्वारा आजादी के वीर सपूत अमर शहीद अशफाक उल्ला खां,अमर शहीद रामप्रसाद बिस्मिल और अमर शहीद ठाकुर रोशन सिंह को श्रद्धांजलि अर्पित की गई । इस अवसर पर विशेष सानिध्य बाल योगी महंत चरण दास महाराज का रहा। शहीदों को श्रद्धा सुमन अर्पित करने के लिए अनेक संगठनों के पदाधिकारी श्रद्धांजलि सभा में उपस्थित रहे । देशभक्तों के बलिदान पर बोलते हुए महंत चरण दास महाराज व राष्ट्रीय युवा पुरस्कार अवॉर्डी अशोक कुमार भारद्वाज ने
कहा कि देशभक्तों के त्याग और बलिदान से भारत आजाद हुआ था । उन्होंने कहा कि न जाने कितने नौजवानों ने हंसते-हंसते फांसी के फंदे क



ो गले से लगाया । उनमें ये तीनों महान सपूत भी शामिल रहे हैं।
उन्होंने कहा कि अमर शहीद अशफाक उल्ला खां का जन्म 22 अक्टूबर 1900 ई.में उत्तरप्रदेश के शाहजहांपुर स्थित शहीदगढ़ में हुआ था। वे पठान परिवार से ताल्लुक रखते थे और उनके परिवार में लगभग सभी सरकारी नौकरी में थे। देश में चल रहे आंदोलनों और क्रांतिकारी घटनाओं से प्रभावित अशफाक के मन में भी क्रांतिकारी भाव जागे और उसी समय मैनपुरी षड्यंत्र के मामले में शामिल रामप्रसाद बिस्मिल से हुई और वे भी क्रांति की दुनिया में शामिल हो गए। इसके बाद वे ऐतिहासिक काकोरी कांड में सहभागी रहे और पुलिस के हाथ भी नहीं आए।। देशभर में आज बलिदान दिवस मनाया जा रहा है। स्वतंत्रता सेनानी राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खां और ठाकुर रोशन सिंह को 19 दिसंबर 1927 को फांसी दी गई थी। कहा कि महानायक पंडित राम प्रसाद बिस्मिल फांसी से ठीक पहले अपनी मां से मिलकर खूब रोए थे।पंडित राम प्रसाद बिस्मिल की माता मूलरानी ऐसी वीरमाता थीं जिनसे वे हमेशा प्रेरणा लेते थे। शहादत से पहले ‘बिस्मिल’ से मिलने गोरखपुर वे जेल पहुंचीं तो पंडित बिस्मिल की डबडबाई आंखें देखकर भी उन्होंने धैर्य नहीं खोया।कलेजे पर पत्थर रख लिया और उलाहना देती हुई बोलीं, ‘अरे, मैं तो समझती थी कि मेरा बेटा बहुत बहादुर है और उसके नाम से अंग्रेज सरकार भी थरथराती है। मुझे पता नहीं था कि वह मौत से इतना डरता है।इतिहासकार बताते हैं कि इसके बाद बिस्मिल ने बरबस अपनी आंखें पोंछ डालीं और कहा था कि उनके आंसू मौत के डर से नहीं, उन जैसी बहादुर मां से बिछड़ने के शोक में बरबस निकल आए थे। वही उन्होंने ने रोशन के बलिदान पर बोलते हुए कहा कि नौ अगस्त 1925 को उत्तरप्रदेश की राजधानी लखनऊ के पास काकोरी स्टेशन के पास जो सरकारी खजाना लूटा गया था उसमें ठाकुर रोशन सिंह शामिल नहीं थे इसके बावजूद उन्हें 19 दिसंबर 1927 को इलाहाबाद के नैनी जेल में फांसी पर लटका दिया गया।
जिंदगी जिंदा-दिली को जान ऐ रोशन,वरना कितने ही यहां रोज फना होते हैं:फांसी से पहली रात ठाकुर रोशन सिंह कुछ घंटे सोए। फिर देर रात से ही ईश्वर भजन करते रहे। स्नान-ध्यान किया और कुछ देर गीता पाठ में लगाया फिर पहरेदार से कहा 'चलो , पहरेदार हैरत से देखने लगा यह कोई आदमी है या देवता।उन्होंने अपनी काल कोठरी को प्रणाम किया और गीता हाथ में लेकर निर्विकार भाव से फांसी घर की ओर चल दिए। फांसी के फंदे को चूमा फिर जोर से तीन बार वंदे मातरम का उद्घोष किया और वेद मंत्र का जाप करते हुए फंदे से झूल गए। कहा कि तीनों देशभक्तों ने आखरी दम तक वीरगति के साथ जीवन जिया। तीनों महान पुरुषों के बलिदान से देश के युवाओं को प्रेरणा लेनी चाहिए और जब भी राष्ट्र को नौजवानों की जरूरत पड़े तो देश के युवाओं को देश की हिफाजत के लिए आगे आना चाहिए।इस अवसर पर सामाजिक कार्यकर्ता रमेश सैनी, शिक्षाविद मास्टर अजय श्योराण ने भी देश भक्तों के बलिदान पर प्रकाश डाला।
इस अवसर पर महंत चरण दास महाराज, ध्यान दास महाराज, कर्म दास ,सामाजिक कार्यकर्ता रमेश सैनी, शिक्षाविद मास्टर अजय श्योराण, शिव कुमार सैनी, राष्ट्रीय युवा पुरस्कार अवॉर्डी अशोक कुमार भारद्वाज, विजय सेन , राम अवतार सैनी, भिवानी सपोर्टस कराटे एसोसिएशन के महासचिव हरीश कोच, आरोही भारद्वाज, नव्या भारद्वाज,दीपक गगुप्ता ,राजेश सहित अनेक गणमान्य व्यक्ति श्रद्धांजलि सभा में उपस्थित रहे और शहीदों को सलाम किया।
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